भू-क़ानून हेतू प्रेस विज्ञप्ति
1- परिकल्पना:- 90 के दशक से लेकर 2000 तक देश की परिस्थितियों के अंदर जो घटनाएं उभर रही थी उसी को लेकर हम भी अपने भविष्य को लेकर काफ़ी डरे व सहमें हुए थे, इसी बीच पृथक राज्य की मांग जोर पकड़ने लगी और हमारी कल्पना/परिकल्पना के मूल में हिमाचल जैसा राज्य की भावना तैरने लगी, उत्तराखंड का हर छोटा बड़ा बस यही कहता था की हमारा राज्य भी हिमाचल जैसा होना चाहिए, लोगों ने इस सपने को जीते हुए काफ़ी संघर्ष किया और हम भी तब सड़को में माशालों को हाथ में लेकर ये गाते हुए निकलते थे “ले मशाले चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के, अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के”!
2- राज्य निर्माण:- 9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल राज्य अस्तित्व में आया लोगों को अब लगने लगा की अब हम अपने सपनों का राज्य बनायेंगे जैसी की हमारी कल्पना/परिकल्पना थी, राज्य बनने से पहले की परिकल्पना के मूल में हिमाचल जैसा राज्य निर्माण था और राज्य बनते ही यह परिकल्पना अंधेरी गहरी खाई में विलुप्त होने लगी, जिन लोगों को राजनीतिक चासनी में ऊँगली डूबाकर स्वाद लेना था उनकी सोच राज्य के आमजन से दूर हो गयी, और जो ये कहते हुए नहीं अघाते थे की राज्य हमारे दम से बना हैं वो लोग भी चासनी के किनारे खड़े होकर स्वाद चखने में मघन होने लगे, उत्तराखंड की भोलीभाली जनता फिर वही ठगा सा महसूस करने लगी!
3- पहली निर्वाचित सरकार:- 2002 में पहली निर्वाचित सरकार का गठन होते ही ज़ब यह महसूस किया गया की हिमाचल ने अपना पहला पृथक भू-क़ानून सेक्शन 118 राज्य गठन की प्रक्रिया से पूर्णराज्य बनने के दौरान 4 साल के अंदर बना दिया था जिसमें की राज्य के बाहर से कोई भी व्यक्ति जो वहाँ का भूमिधरी ना हो एक इंच भी जमीन नहीं ख़रीद सकता हैं, 2004 तिवारी सरकार ने कोशिश की थी राज्य की मूलभवनाओं को समझकर हिमाचल जैसा भू-क़ानून लाने की, उन्होंने इसमें तीन सदस्यीय समिति बनाई पर इस समिति में से दो सदस्यों ने 500 वर्गमीटर प्रतिपरिवार बाहरी व्यक्ति अपने परिवार के लिए आवासीय प्रयोजन हेतू क़ृषि भूमि ख़रीद सकता हैं की अनुशंसा की, बस यही से दुर्भाग्य शुरू हो गया, हमारी कल्पना/परिकल्पना पर खुला ट्यूबवेल छोड़ दिया गया!
4- खंडूरी सरकार:- 2007 में खंडूरी सरकार ने ज़ब देखा की पूर्व की सरकार ने 500 वर्गमीटर प्रतिपरिवार जमीन खरीदने की छूट दे रखी हैं तो उन्होने भी राज्य के आमजनमानस को कुछ ना कुछ तो दिखाना ही था, उन्होने दो कदम आगे बढ़कर एक अध्यादेश निकाला जिसमें ये लिखा गया की राज्य के बाहर से कोई भी व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के लिए 250 वर्गमीटर क़ृषि योग्य भूमि को आवासीय प्रयोजन के लिए ले सकता हैं, तो यहाँ पर स्वयं शब्द का खेल सायद सरकार की मंसा अच्छी रही होगी पर बाहरी लोग इस स्वयं शब्द को भलीभांती जानकर अपने परिवार के 5 सदस्यों के लिए स्वयं-स्वयं करके 1250 वर्गमीटर जमीन ख़रीद कर लेंड बैंक बनाने लग गये, आश्चर्य की बात यह हैं की किसी भी दम्भ भरने वाले संगठनों ने इसको आज तक अभी तक पकड़ा ही नहीं और राज्य की क़ृषि भूमि धड़ल्ले से बिकती रही!
5- बीच की सरकारों का टाइम:- 2007 से लेकर 2017 तक ना जाने कितने ही भूमि को बेचने के लिए अंदर ही अंदर अध्यादेश आये आमजन को सरकारों व दम्भ भरने वाले संगठनों ने पता ही नहीं लगने दिया, बीच में निशंक सरकार व 2012 में बहुगुणा सरकार व फिर हरीश रावत की सरकार ने भी न्यूटल गेर मे ही सरकार को खंडूरी सरकार के अध्यादेश के साथ युही चलने दिया, और जमीनों पर बाहर वालों का कब्ज़ा होते गया कुछ ख़रीदी गयी और कुछ कब्ज़ाई गयी, सरकारी/ग्रामसमाज/नगरनिगम/नगरपंचायत/वनभूमि/नदी-नालों-खालों पर बेहिसाब बसावट होती चली गयी, उत्तराखंड का आमजन्मानस फिर वही का वही खड़ा मुकदर्शक बना रहा!
6- त्रिवेंद्र सरकार:- 2017 में ज़ब त्रिवेंद्र सरकार का गठन हुआ तो लोगों को लगा की पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार आयी हैं, कुछ तो राज्यहित में बड़े फैसले होंगे राज्य की कल्पना/परिकल्पना सायद अब पूर्ण हो जायेगी! लेकिन कहते हैं अगर राजनैतिक ईच्छाशक्ति ना हो तो जनता को वो आशातीत परिणाम नहीं मिल पाते हैं, त्रिवेंद्र सरकार की मंसा भले ही सही रही होगी पर दूरदर्शी परिणामों को लाने के लिए जल्दबाज़ी में लिए गये निर्णय बाद में घातक ही होते हैं! त्रिवेंद्र सरकार ने जनता को दीवास्वप्न दिखाते हुए ये बताया की वो राज्य में बड़ा निवेश ला रहें हैं जिसके लिए सबसे पहले उन्होंने जमीनों पर आक्रमण कराया, जमीनों पर एक परिवार का अधिकतम 12.50 एकड़ भूमिजोत का अधिकार था उसी को तोड़ दिया, चाहे राज्य का भूमिधर भूमिहीन ही क्यों ना हो जाये इसकी कोई परवाह नहीं की, और बाहरी कोई कंपनी चाहे वो अर्जी-फर्ज़ी कुछ भी हो उसके लिए जमीनों को सरल व सुलभ करवाने के लिए एकल खिड़की खोलकर जिलाधिकारीयों व उपजिलाधिकारीयों को 15 दिनों में स्वतः ही भूमि हस्ताँतरित करने का अधिकार दे दिया! और इस अध्यादेश को विधानसभा की पटल से पास करवाकर अधिनियम भी बना दिया, ये सब घटनाक्रम को राज्य के दम्भ भरने वाले व मौकापरस्त संगठनों सहित विश्वास खो चुकी राजनैतिक पार्टियां भी चुपचाप देखते रहें, किसी ने कोई मार्च/रैली अनशन-आंदोलन नहीं किया ना ही किसी ने सोशियल मिडिया में कोई प्रतिक्रिया जताई, राज्य की भोलीभाली जनता फिर वही मुकदर्शक बनकर देखती रही!
7- वर्तमान सरकार:- वर्तमान सरकार के मुखियाँ पुष्कर धामी भी पूर्ण बहुमत की सरकार पर सवार हैं पर इनको मालूम हैं की राज्य गठन से लेकर अब तक भू-क़ानून की क्या स्थिति हैं और राज्य की मूल परिकल्पना क्या हैं? अभी तक अस्तित्व में आये सारे भू-अध्यादेश और अधिनियमों को वे ख़ुद व उनकी सरकार काफ़ी बारीकी तथा गहनता से इस पर विचार-विमर्श कर रही हैं, इसी क्रम में सुभाष कुमार की समिति के 23 बिंदुओं की रिपोर्ट (हिमाचल की तर्ज़ पर हो भू-क़ानून) की अनुशंसाओं को जस के तस अपना रहें हैं, साथ ही साथ मुख्य सचिव की अगुवाई में गठित कमेटी को साफ निर्देश दिए हैं की राज्य गठन से लेकर अब तक कितनी कंपनियों को किस-किस प्रयोजन के लिए जमीन दी गयी हैं और उनका अभी तक क्या और कितना उपयोग हुआ हैं? जिनका उपयोग नहीं हुआ हैं उन जमीनों को तत्काल नियम 167 में कार्यवाही कर राज्य सरकार में निहित करें! और एक परिवार को 250 वर्ग मीटर से ज्यादा स्वयं-स्वयं करके कितनी ज़मीने गयी हैं उसका भी डाटा तत्काल सरकार के पास उपलब्ध कराये! वन तथा सरकारी/ग्रामसमाज/नगरनिगम/नगरपंचायत/नदी-नालों-खालों/वक्फ बोर्ड/ट्रस्ट/समितियों आदि अनेको के द्वारा अतिक्रमित भूमि का भी डाटा सरकार ने तुरंत उपलब्ध कराने का दृढ़ निश्चय दिखाया हैं! वर्तमान सरकार के मुखियाँ का दृष्टिकोण व राजनैतिक ईच्छाशक्ति से पहली बार लग रहा हैं की भले ही कुछ समय लग जाये पर अब उत्तराखंड की भोलोभाली जनता के साथ कोई छलावा नहीं होने वाला हैं, जल्द ही राज्य का अपना पहला पृथक भू-क़ानून आने वाला हैं जो उत्तर प्रदेश जमींदारी भूमि विनाश एवं उलन्मूलन एक्ट 1950 की धारा 154 व 157 से अलग होगा!
8- भू-क़ानून की वास्तविकता:- 1994 के दौरान ज़ब उत्तराखंड राज्य की मांग चरम पर थी, तब क्या बच्चें क्या बूढ़े और क्या मातृशक्ति युवाशक्ति सभी लोगों की एक ही धुन थी और परिकल्पना में हिमाचल जैसा राज्य था, उस समय हम भी अपने स्कूल बंद कर सुबह-साम आंदोलनरत थे, 10वी के बोर्ड पेपर की परवाह किये वगैर हमने राज्य आंदोलन में अपने आप को पूरा झोका हुआ था, मस्तिष्क में हिमाचल जैसे राज्य की परिकल्पना जो गुंजायमान थी! राज्य स्थापना के दिन हममें दुनियां की सबसे बड़ी खुशी की लहर थी, समय बीतता गया और हमारी कल्पना/परिकल्पना धूमिल होती नज़र आने लगी, राजनैतिक पार्टियों सहित दम्भ भरने वाले संगठनों व मौकापरस्त संगठनों के क्रियाकलापों को देखते हुए 14-15 साल बीत गये, अब हमें लगने लगा की कोई भी यहाँ ऐसा नहीं हैं जो हिमाचल की तर्ज़ पर राज्य की परिकल्पना को साकार करने जा रहा हैं, हमने फिर ख़ुद ही इस विषय पर एक-दो एक-दो लोगों को पकड़कर भू-क़ानून की चर्चा करना शुरू कर दिया, और लोगों को इस भू-क़ानून के लिए इकठ्ठा कर टीम बनाकर जनजागरण करने लगे, साहस बढ़ता गया और लोगों में जागृति भी आने लगी, फिर 2016 से हमने लगातार भू-अध्यादेश अधिनियमों की शासन से गजट निकालकर चर्चा आमजन तक फैलानी शुरू कर दी क्योंकि हमें बारीकी व गहराई से अंदाजा था की एक दिन सम्पूर्ण राज्य को ज़ब यह पता चलेगा की बाहरी आत्ताई/आयातीत व बाहरी भू-माफ़िया यहाँ बाहुतायात में बस रहा हैं और हमारे “जल जंगल जमीन रोटी-बेटी संस्कृति व पारस्थितिकी तथा हक़-हकूक” को छिन्न-भिन्न कर रहा हैं तो वह स्वयं खड़ा हो जायेगा, हुआ भी ऐसा ही हमने भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान यानी की भू-क़ानून अभियान उत्तराखंड, यह अभियान पुरे प्रदेश में चलाया व रन फॉर भू-क़ानून रन फॉर हेल्थ (मैराथन)/साईकिल संदेश यात्रा/चर्चा-परिचर्चा/गोष्ठीयाँ/नुक्कड़ सभाएं/डोर टू डोर जनजागरण अभियान/2500 किलोमीटर की यात्रा, सभी प्रसिद्ध धामों सहित लोक देवी-देवताओं के श्रीचरणों में भू-क़ानून की अर्जियां अर्पित करी, ताकी राजनैतिक पार्टियों को सद्बुद्धि आ सके और जनता में जागृति ला सके!
क्रम का सिलसिला शासन सत्ता में भी लगातार जारी रहा, सभी मुख्यमंत्रियों को ज्ञापन सौंपते रहें और विधानसभा कुच सहित मातृशक्तियों द्वारा 84 दिनों तक अनशन बदस्तूर जारी रहा, सरकार ने जब देखा की ये अभियान नहीं मानने वाला हैं तो सुभाष कुमार की अध्यक्षता मे एक समिति गठित की और हमसे समन्वय बनाया, जिसके परिणामस्वरुप समिति ने हिमाचल की तर्ज़ पर अपनी रिपोर्ट सरकार को डेढ़ साल पहले सौंप दी, हमारी लगातार नज़र और समन्वय सरकार से बना रहा और 23 बिंदुओं की रिपोर्ट को लागू करवाने में हम सफल रहें, इस बीच हम कई बार धामी सरकार से मिले जिनको हम ये समझाने में सफल रहें की 250वर्ग मीटर एक परिवार को न जाकर स्वयं-स्वयं परिवार के 5 सदस्यों ने ख़रीदी हैं, जिससे एक परिवार का लैंड बैंक 1250 वर्गमीटर का हो गया हैं! वही जिस प्रयोजन के लिए बाहरी कंपनियों ने जमीन ख़रीदी हैं उसका उपयोग उस प्रयोजन में ना होकर प्लाटिंग में किया गया हैं, इन्हीं कारणों से प्रदेश की जमीनों का रकबा लगातार घटता जा रहा हैं, सरकार हमारी बातों को अक्षरशः आत्मसात करके चलने लगी हैं, इसलिए हमें भरोसा हैं कुछ देर भले ही हो सकती हैं, पर अब जल्द ही धामी सरकार पहला पृथक भू-क़ानून लाने जा रही हैं, इस क्रम में हम धामी सरकार का भू-क़ानून के लिए किए गये अभी तक के फैसलों के लिए आभार प्रकट करते हैं!
9- मौकापरस्तो का खेल:- राज्य गठन होते ही ऐसे मौकापरस्त संगठनों के साथ-साथ बाहरी व क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टियों ने भी उत्तराखंड के कर सकने वाली शक्ति यानी की मुख्यमंत्रियों को हिलाने के लिए लगातार चाल चली हैं और चलते आये हैं! ऐसी शक्तियों ने कभी नहीं चाहा की यहाँ एक स्थिर मुख्यमंत्री बना रहें अगर ऐसा होता तो उत्तराखंड का विकास व इसकी कल्पना/परिकल्पना के अनुसार निर्माण होता, ऐसी आत्तायी आयातीत व बाहरी भू-माफ़ियायों ने राज्य के मौकापरस्त संगठनों व क्षेत्रीय पार्टियों के साथ हाथ मिलाकर समय-समय पर देवभूमि को विचलित किया हैं, ऐसे संगठन हाथ में लेंस लेकर चल रही मांगो व प्रचलित मुद्दों पर बड़ी बारीकी से नज़र रखते हैं, और अनुकूल समय मिलते ही प्रचलित मुद्दों के बीच में धीरे से घुसकर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश करते हैं, और जनता में ये दिखाने की कोशिश भी करते हैं की इस मांग या मुद्दे को हम ही उठा रहें हैं! भोलीभाली जनता ज्यादा गहराई से कभी भी ये जानना नहीं चाहती हैं की आखिर अमुख मांग/मुद्दे का प्रचलनकर्ता कौन हैं? बस इसी बात का फायदा इन मौकापरस्तो ने राज्य गठन से लेकर अब तक उठाया हैं! इन्हीं मौकापरस्तो के कारण उत्तराखंड का आज तक अभी तक अपना पृथक भू-क़ानून लागू नहीं हो पाया हैं, ये लोग तो पुराने हैं पर चेहरा नया ढूंढ कर लाते हैं ताकी ये अपने मकसद में कामयाब हो जाये और करते या होते हुए काम को बिगाड़ सके! भू-क़ानून की मांग को लगातार करते कौन आ रहा हैं? जिस पर कई क्षेत्रीय गायको ने भी अपना योगदान दिया हैं, पर मौकापरस्त लोग क्या जाने उन्हें तो जनता को गुमराह ही करना होता हैं, ऐसे लोग होते हुए काम या मुख्यमांग की धार को कुंद करने के लिए मुख्यमांग के आगे या पीछे कोई नई मांग जोड़ देंगे ताकी सरकार प्रचलित मांग जो जनता के साथ रच बस गयी हैं उसे ना कर सके, इन्हीं मौकापरस्तो के कारण सरकार चिढ़ जाती हैं और जो लोग राजनीती करते हैं फिर उनको सबक सिखाने के लिए मांग को अधर में लटका देती हैं! हमें अब ये डर सताने लग गया हैं की बड़ी मुश्किल से हमने सरकार के साथ समन्वय बनाकर भू-क़ानून की मांग को सार्थक किया हैं, कही ऐसा ना हो की इन मौकापरस्तो व विश्वास खो चुकी राजनैतिक पार्टियों के श्रेय की होड़ में सरकार अपना कदम पीछे ना खींच ले, इसलिए उत्तराखंड की देवतुल्य जनता से हमारा विनम्र निवेदन हैं की वर्तमान सरकार पहला पृथक भू-क़ानून लगाने जा रही हैं भले ही कुछ देर जरूर होगी पर निर्णय ठोस व अवश्यँभावी होगा, भू-क़ानून के लिए मौकापरस्तो से दूरी ही राज्यहित में होगा!
10- वादों से कमजोरी:- राज्य गठन से लेकर अब तक बाहरी शक्तियों ने यहाँ कई प्रकार के वादों को पनपाने की कोशिश की जिसमें वो सफल होते हुए भी आये हैं, पर नुकसान हमेशा देवभूमि का ही हुआ हैं, जो भी वाद यहाँ परचलित हैं उसको यहाँ का हर व्यक्ति भलीभांती जानता हैं! हम खुलकर सभी वादों को क्रमवार यहाँ दर्शा सकते थे पर ऐसा करना राज्यहित में कदापि नहीं होगा, इसलिए आप सभी राज्य की महान जनता से हमारा निवेदन हैं की अब वक्त हैं अपना पहला पृथक “हिमाचल जैसा भू-क़ानून” के लागू होने का! इसलिए मौकापरस्तो व विश्वास खो चुकी राजनैतिक पार्टियों तथा बाहरी आत्तायी-आयातीत सहित बाहरी भू-माफियायों से सावधान रहने की!
आप सभी राज्यवासियों के साथ व सहयोग सहित वर्तमान सरकार के भू-क़ानून हेतू लिए गये निर्णयों के लिए आभार हैं!
ध्यानाकर्षण:- एक नियम के अनुसार ज़ब किसी राज्य का गठन किया जाता हैं तो उसके स्थापना से लेकर 15 साल पूर्व से निवास की गणना की जाती हैं, यदि उत्तराखंड राज्य की स्थापना 9 नवम्बर 2000 को हुई हैं तो मूलनिवास की कट ऑफ़ डेट 9 नवंबर 1985 स्वतः ही मानी जायेगी! राज्य को बने 25 साल होने जा रहें हैं यह अंतर 40 सालों का हो रहा हैं! मूलनिवास 1985 हमारे भू-क़ानून की मांग में निहित हैं जिसका स्वरुप हिमाचल जैसा हैं, और सुभाष कुमार की समिति की रिपोर्ट भी इसकी अनुशंसा करती हैं! अब हिमाचल में नया नियम ये हैं की अगर कोई व्यक्ति 30 सालों से वहाँ निवास कर रहा हैं तो वो अपने जीवनकाल में केवल एक बार अपने परिवार के लिए आवासीय प्रयोजन हेतू जमीन ख़रीद सकता हैं! बाकी देवतुल्य जनता आप ख़ुद ही समझ सकते हो की गुमराह होने से कैसे बचा जा सकता हैं!
विशेष:- सनद रहें हम एक सीमांत प्रदेश हैं जिसकी सरहदे पूर्व में नेपाल व उत्तर में चीन से लगी हैं, लिहाजा हमारी जिम्मेदारी देश के अन्य नागरिकों से ज्यादा बनती हैं और हमें अपने “जल जंगल जमीन रोटी(रोजगार)-बेटी(ईज्जत) संस्कृति(डेमोग्रेफी चेंज) व पारस्थितिकी(जलवायु परिवर्तन) के साथ-साथ हक-हकूक” को हर हाल में बचाना ही होगा! हिमाचल के यशवंत सिंह परमार जी ने 1972 में भू-क़ानून की महत्ता को भलीभांती समझ लिया था, और अब पहली बार ऐसे यशवश्वी मुख्यमंत्री हमें मिले हैं जिनसे समग्र जनता को हिमाचल जैसे पृथक भू-क़ानून की उम्मीद जगी हैं! इसी वेग व निर्णय हेतू भू -क़ानून अभियान उत्तराखंड आपका पुनः आभार व्यक्त करता हैं!
निवेदन:- क्या राज्यहित में अपने नैनीहालों के स्वर्णिम/उज्जवल/निडर/बेखौफ़/सुरक्षित भविष्य के लिए उत्तराखंड की देवतुल्य जनता इस लेख/विचार/विमर्श/मंसा व सत्य को अग्रसरित(शेयर) करने का कष्ट कर सकती हैं? यदि कर सकते हैं तो फिर अपने सभी ईष्ट मित्रों के ग्रुप सहित राज्य के जन-जन तक इस लेख को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने में अपनी भूमिका का निर्वहन अवश्य करें… साभार!
प्रेस कांफ्रेंन्स में उपस्थित लोगों में दिनेश फुलारा, धना वाल्दिया, अशोक नेगी, आनंदी चंद, आनंद सिंह रावत, हंसा धामी, इंद्रदेव सती, सुभागा फर्सवाण, आचार्य प्रकाश पंत, कृष्णा बिज्लवाण, भुवन गोश्वामि, किरन सुन्द्रियाल, पुष्पा बिष्ट, शंकर कांडपाल, कमला नेगी,शकुंतला तढियाल, रामप्यारी ईष्टवाल, पुष्पा चौहान, पूजा राणा राजेश पेटवाल, राजेश कुमार, पूनम डबराल सहित सैकड़ो लोग मौजूद थे!
शंकर सागर…
संस्थापक/मुख्यसंयोजक
भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान (भू-क़ानून अभियान) उत्तराखंड व अन्य सभी संघर्षी साथी तथा सहयोगी संगठन..!
मो. 9760790767…
Author: Uttarakhand Headline
Chief Editor . Shankar Datt , Khatima, u.s.nagar , Uttarakhand,262308
1 thought on “उत्तराखंड भू कानून को लेकर प्रेस वार्ता: शंकर सागर”
Good efforts