किसी राष्ट्र की आत्मा तब रोती है, जब उसके सच्चे रक्षक गुमनाम रह जाते हैं। और वह मुस्कुराती है, जब देर से ही सही, उन्हें गले लगाकर कहा जाता है – भारत को तुम पर गर्व है।
2014 के बाद पद्म पुरस्कारों की पूरी परंपरा बदल गई। अब वो वंचित, उपेक्षित, चुप साधु, गुमनाम संत, गाँव के विज्ञान शिक्षक, लोकगीतों के अंतिम गायक, सभी को राष्ट्र ने पहचान कर गले लगाया।
कुछ ऐसे ही रत्नों की सूची (कुछ उदाहरण):
भीमाव्वा शिलेक्याथारा टोगलु गोंबेयाटा (चमड़े की कठपुतली)2024
हिराभाई लखाभाई दाढ़ी लोक चिकित्सा 2023
करियप्पा हुलीप्पा बेल्लाल जैविक खेती 2022
राम सैनी पर्यावरण संरक्षण 2021
डॉ. के. यशवंत आदिवासी साहित्य 2020
पारासुराम खिरे ग्रामीण विज्ञान नवाचार 2019
मेकाथोटी शिवा दलित मानवाधिकार 2018
मोहम्मद शरीफ (लखनऊ) अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार 2019
(ऐसी 100 से अधिक कहानियाँ हैं – हर एक, भारत की नई आत्मकथा का अध्याय।)
यह नया भारत है – जहाँ पुरस्कार अब चाटुकारों को नहीं, चरित्रवानों को मिलते हैं।
यह मोदी युग है – जहाँ पुरस्कार नहीं बाँटे जाते, इतिहास सँवारा जाता है।
यह वही भारत है – जहाँ भीमाव्वा जैसी माँएँ, जो कठपुतलियों में रामायण गाती थीं, अब स्वयं भारत की नायिका बन गई हैं।
समाप्ति नहीं, आरंभ:
जब एक झुर्रीदार हथेली पुरस्कार थामती है, तो पूरी सभ्यता झुकती है – यह सम्मान नहीं, यह ऋण चुकाना है।
भारत माता की उन बेटियों और बेटों को अब मंच मिल रहा है – जो बोलते नहीं थे, पर जो दिखा रहे थे कि संस्कृति शोर से नहीं, संकल्प से जिंदा रहती है

Author: Uttarakhand Headline
Chief Editor . Shankar Datt , Khatima, u.s.nagar , Uttarakhand,262308